वट सावित्री व्रत : ऐसे करिये त्रिदिवसीय वटसावित्री व्रत का पूजा,राशि के अनुसार करें परिधान धारण
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में विशेष कामना की पूर्ति के लिए देवी-देवता की पूजा-अर्चना करके व्रत उपवास रखने की प्राचीन परम्परा है। अखड सौभाग्य व सुख की कामना के संग वट सावित्री व्रत ज़्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी से शुरु होकर कृष्ण पक्ष की अमावस्या एक किया जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु एवं अपने मनोरथ की पूर्ति के लिए रखती हैं। व्रत के दिन वट वृक्ष तथा सत्यवान व सावित्री एवं यमराज की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष के मूल में श्री ब्रह्मा जी, धड़ में श्री विष्णु जी तथा ऊपरी मस्तिष्क वाले भाग में श्री शिवजी का वास होता है जिसके फलस्वरूप वटवृक्ष की पूजा की जाती है। इस व्रत के प्रभाव से सावित्री ने मृत्यु के बन्धन से अपने पति सत्यवान को धर्मराज से छुड़वाया था।
पूजा का विधान
बट सावित्री व्रत में त्रयोदशी से अमावस्या तक व्रत रखने का नियम है। तीन दिन के व्रत न रखने की स्थिति में मात्र अमावस्या के दिन ही व्रत रखकर प्रतिपदा के दिन विधिपूर्वक उद्यापन किया जाता है पूर्वक किया जाता है।
ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 24 मई शनिवार को सायं 7 बजकर 21 मिनट पर लगेगी जो कि 25 मई, रविवार को दिन में 3 बजकर 52 मिनट तक रहेगी, इस दिन व्रत का प्रथम संयम रखा जायेगा। चतुर्दशी तिथि 26 मई, रविवार को दिन में 3 बजकर 52 मिनट से 26 मई सोमवार को दिन में 12 बजकर 12 मिनट तक रहेगी, इस दिन व्रत का दूसरा संगम रहेगा। अमावस्या तिथि 26 मई सोमवार को दिन में 12 बजकर 12 मिनट से 27 मई, मंगलवार को प्रातः 8 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। इस दिन व्रत का तृतीय संयम एवं अंतिम दिन रहेगा। लगातार तीन दिन एक व्रत रखने की स्थिति में प्रथम दिन यानि त्रयोदशी को रात्रि में भोजन, द्वितीय दिन यानि चतुर्दशी को समाचित भोजन तथा अंतिम दिन अमावस्या तिथि को श्रद्धाभक्ति के साथ पूर्ण उपवास रखकर व्रत को प्रक्रिया पूर्ण की जाती है।
पूजा-अर्चना का विधान
कृष्ण त्रयोदशी तिथि के दिन स्नान ध्यान करके अपने आराध्य देवी-देवता की पुजनोंपरांत वटसावित्री व्रत का संकल्प लेना चाहिये। वट वृक्ष में त्रिदेव का बास माना गया है। जिसके फलस्वरूप वट के वृक्ष की खास महिमा है। इस दिन बट के वृक्ष को विधि-विधान पूजा अर्चेक करके वट वृक्ष को जल से सिंचित करना चाहिए।
वटवृक्ष की होगी पूजा
वट वृक्ष को रोली का तिलक लगाकर चावल, भिगोया हुआ चना, गुड़ एवं हल्दी आदि अर्पित करना चाहिए। धूप प्रज्वलित करके देशी घी का दीपक भी जलाया जाता है अखण्ड सौभाग्य की कामना को मन में लेकर हल्दी से रंगे हुए कच्चे सूत को वर वृक्ष को लपेटते हुए 7 बार परिक्रमा की जाती है। सावित्री की कथा का पाठन व श्रवण करने का विधान है। वट वृक्ष के नीचे बांस के एक पात्र में सप्तधान्य तथा एक पात्र में सत्य सावित्री की मूर्ति रख कर पूजा की जाती है।
पारिवारिक परम्परा के अनुसार भैसे पर आरुढ़ यमराज की प्रतिमा धूप-चन्दन दीपक रोली केशर एवं फल आदि में पूजा करते है। व्रतकर्ता वटवृक्ष के पत्ती की माला भी धारण करते हैं। वट सावित्री के व्रत से पति की दीर्घायु के साथ अन्य अभिलाषाएँ भी पूर्ण होती।
राशि के अनुसार करें परिधान धारण
वट सावित्री के व्रत को और अधिक खुशनुमा बनाने के लिए राशियों के रंग के मुताबिक महिलाएँ परिधान धारण करें तो सौभाग्य में वृद्धि तो होगी ही साथ ही उनको अन्य लाभ भी मिलेगा। सामान्यतः सुनहरा पौला और लाल रंग के परिधान धारण करना शुभ माना गया है। लाल रंग से ऊष्मा व ऊर्जा का संचार होता है, वहाँ पर सुनहले पीले रंगों से जीवन मे प्रसन्नता मिलती है। आजकल राशि के अनुसार आभूषण व परिधान धारण करने का प्रचलन बढ़ रहा है। कौन-सा रंग किस राशियों के लिए लाभदायक योगा- मेष-लाल, गुलाबी एवं नारंगी वृषभ सफेद एवं क्रीम मिथुन हरा फिरोजी कर्क-सफेद क्रीम सिंह – केसरिया लाल और गुलाबी कन्या-हरा व फिरोजी। तुला – सफेद व हल्का नीला। वृश्चिक – नारंगी लाल गुलाबी। धनु – पीला सुनहरा मकर व कुम्भ-भू स्लेटो व ग्रे। मीन-पीला व सुनहरा।
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विश्वनाथ मंदिर 1.5 km, काiलभैरव 2 km, संकटमोचन .75km, अस्सी घाट .50 km
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